भारतभूमि ऋषि-मुनियों, अवतारों की भूमि है। पहले लोग यहाँ मिलते तो राम-राम कहकर एक दूसरे का अभिवादन करते थे।
दो बार राम कहने के पीछे कितना सुंदर अर्थ छुपा है कि सामने वाला व्यक्ति तथा मुझमें दोनों में उसी राम परमात्मा ईश्वर की चेतना है, उसे प्रणाम हो! ऐसी दिव्य भावना को प्रेम कहते हैं। निर्दोष, निष्कपट, निःस्वार्थ, निर्वासनिक स्नेह को प्रेम कहते हैं। इस प्रकार एक दूसरे से मिलने पर भी ईश्वर की याद ताजा हो जाती थी पर आज ऐसी भावना तो दूर की बात है, पतन करने वाले आकर्षण को ही प्रेम माना जाने लगा है।